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{{KKRachna
|रचनाकार=फ़रोग फ़रोखज़ाद
|अनुवादक=यादवेन्द्र
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एकबार फिर से मैं अभिवादन करती हूँ सूर्य का
मेरे अंदर जो बह रही है नदी
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