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<poem>
गुलमोहर रोपा था पिछले साल मैंने,
आज वो मुझसे भी ऊँचा हो गया है।

रूप पा लेगा सलोना साल भीतर
देखने वालों का मन हरने लगेगा
मन पुलक जाएगा मेरा देखकर, जब
फूल से तन शाख़ का भरने लगेगा

मन सुहानी कल्पना में खो गया है।

छाँह देगा जब थके-हारे पथिक को
मुझको भीतर से सुखद एहसास होगा
जिसका बच्चा मान देता है सभी को
उसकी माँ जैसा मुझे आभास होगा

सुख सृजन का मेरे भीतर बो गया है।
</poem>
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