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<poem>
तिश्नगी दिल की बुझाना तो ख़बर कर देना
अश्क आँखों में छुपाना तो ख़बर कर देना

हम ने कुछ गीत लिखे हैं जो सुनाना हैं तुम्हें
तुम कभी बज़्म सजाना तो ख़बर कर देना

हादसे राह-ए-मोहब्बत का मुक़द्दर ठहरे
जब हमें दिल से भुलाना तो ख़बर कर देना

जिन किताबों में छुपाए हैं मिरे ख़त तुम ने
उन किताबों को जलाना तो ख़बर कर देना

आज बेगाना समझते हो तो समझो लेकिन
जब सताए ये ज़माना तो ख़बर कर देना

मैं ज़रूर आऊँगा 'मंसूर' तुम्हारी ख़ातिर
तुम जो मक़्तल को सजाना तो ख़बर कर देना
</poem>
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