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{{KKRachna
|रचनाकार=रघुनाथ शाण्डिल्य
|अनुवादक=
|संग्रह=सन्दीप कौशिक
}}
<poem>
'''दोहा-'''
सुण भैना की बात को, कंस हुआ खामोश।
फेर बुद्धि में एक दम, उठा कुफर का जोश।।

'''तर्ज -''' फिल्मी (मेरा जूता है जापानी)

'''ना बात समझ में आती, अब भय में भर गई छाती।'''
'''आप मरे जग परलो जग में, ना कोई सोती बाती।।टेक।।'''

अपनी मौत आज दुनिया में, कानों-सुणके जाणी-2।
झूठी कभी नहीं हो सकती, हुई अलौकिक बाणी-2।।
ना कोई कहाणी भाती, फिता चूंट कालजा खाती।
खुद जीणे को बहन आज, भाई को झूठ भकाती।। 1।।

सुणी बात आकाश गूंज रहा, पवन में कोई पुकारे 2।
इस मौके पै चूक गया तो, तेरा पुत्र मुझे मारे 2।।
हारै कीड़ी से हाथी, तू भूल में भरी भुलाती।
तू मौके पै जड़ काटै, तेरे दिल में द्वेष दराती।। 2।।

आगे जो होने वाला है, सारी मालूम पड़ेगी।
भविष्यवाणी हुई सुणे से, शरीर की दशा गीड़ेग़ी-2।।
भिडग़ी लपट आग की ताती, तेरी सूरत आग लगाती।
जणै ईख काटके कृषक, फूंके ठा-ठा खेत की पाती।। 3।।

राजनीति में लिख हटाणा, जो रोड़ा हो मग में-2।
काया की माया दुनिया में, ठग छलिया पग-पग में-2।।
जग में सबे जिन्दगी चाहती, रघुनाथ दिया दम बाती।
गुरु मानसिंह का गाणा सुणके, दुनिया फायदा ठाती।। 4।।
</poem>
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