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{{KKRachna
|रचनाकार=रघुनाथ शाण्डिल्य
|अनुवादक=
|संग्रह=सन्दीप कौशिक
}}
<poem>
'''नल- लादे चौपड़ सार प्यारी, देर मत करिये,'''
'''दमयन्ती- जुवे का खेल का जिकरा फेर मत करिये ।।टेक।।'''

नल- पतिव्रता जानूं था पर तू सती नहीं है,
दमयन्ती- जुआ खेलन की मर्जी मेरी कती नहीं है,
नल- थारी गुद्दी पीछे अकल, आगे मती नहीं है,
दमयन्ती- कुल द्रोही छलिया की, कहीं गती नहीं है,
नल- उस पुष्कर बदकार की, तू मेर मत करिये,
दमयन्ती- स्यार का शिकार इसे, शेर मत करिये।।1।।

नल- जिसने स्यार बतावे, पुष्कर जहरी नाग है,
दमयन्ती- सगे भाई से जुवा खेले, तू निर्भाग है,
नल- तेरे बचन तेल की जगह, और भीतर आग है,
दमयन्ती- अपने हाथों मत काटे, तेरा हरा बाग है,
नल- हांसी के माह रानी खांसी, खेर मत करिये,
दमयन्ती- म्हारे बालकों के साथ, तू अन्धेर मत करिये।।2।।

नल- सादी भोली जानूं था, पर छल की भरी है,
दमयन्ती- ये लो चौपड़ सार, थारे आगे धरी है,
नल- पुष्कर से खेलन की, नल ने त्यारी करी है,
दमयन्ती- चलते ही आई छींक, रानी घनी डरी है,
नल- इस छींक का कोई ख्याल, मेरी बुटेर मत करिये,
दमयन्ती- आम के पेड़ नै पिया, बड़ बेर मत करिये।।3।।

नल- चौपड़ सार देके भी, क्यूं आ नजदीक हुई,
दमयन्ती- टाल करो पिया खेलन की, असगुन की छींक हुई,
नल- होनी है सो होगी, अबलो बिल्कुल ठीक हुई,
दमयन्ती- समझाये भी ना माने, ये किसकी सीख हुई,
नल- रघुनाथ कमाके माया का कहीं ढेर मत करिये।
दमयन्ती- गुरु मानसिंह कहै कुछ खोटे का, हेर मत करिये।।4।।
</poem>
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