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23:09, 26 अगस्त 2020 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=रघुनाथ शाण्डिल्य
|अनुवादक=
|संग्रह=सन्दीप कौशिक
}}
<poem>
'''भुजा के बल से राज करेंगे, तेग सै लें सरदारी।। टेक।।'''
असली बात ये नीचा हमें, धर्म ने दिखाया है।
तू होग्या देणे वाला, और हमें फकीर बताया है।।
एक सी नहीं रहती दिन में, धूप कदी छाया है।
हमें कहे कंगाल आज, तेरे पास माया है।।
शर्म नहीं आती अभिमानी, भूल में गरमाया है।
बन्ध हुआ बण में नीच, कंगले ने छुटाया है।।
समय के ऊपर देखा जा है, किसी भुजा करारी है।। 1।।
मांगने का काम होता, आदमी अपाज का।
हो जागी मालूम आदत, छत्री के मिजाज का।।
बेईमान छलिया तेरे, खोज ना लिहाज का।
याद राखियो जुवे बाज, बोल मेरा आज का।।
पाड़ ल्यूंगा पूरा अपने, मूल और ब्याज का।
गदा से बंटवारा करूं, हस्तनापुर के राज का।।
समय आणदे ले लूंगा तेरा, मार के मान जुवारी है।। 2।।
भरा भराया घड़ा पाप का, अपणे हाथ फोडूंगा।
रोके से ना रुकूं, जब मैं गदा लेके दौडूंगा।।
नंगी जांघ द्रोपदी को, दिखाई वो तोडूंगा।
एक सौ एक कैरों सबके, शरीर को मोडूंगा।।
टूटा हुया तार प्यार, फेर त्रिया से जोडूंगा।
ऐंठ में शरीर तेरा, सारा लहू निचोडूंगा।।
तेरे लहू का तेल गेर के, केश संवारै नारी है।। 3।।
कह दिये कुणबे से, बली भीम सन्धि करता नहीं।।
म्हारे जी का घाव तेरे, लहू बिना उभरता नहीं।
राजपूत का बेटा कभी, लड़ाई से डरता नहीं।।
ना सहता अपमान, करके बौर मैं भरता नहीं।
सौ कैरों को मैं मारूंगा, कहे बिना सरता नहीं।।
मरता है शरीर और, जीव आत्मा मरता नहीं।
गुरु मानसिंह की पूजा करले, रघुनाथ पुजारी है।। 4।।
</poem>