Changes

{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=रामधारी सिंह "दिनकर"
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
 
'''कला-तीर्थ'''
::दर्शन देता उसे स्वयं तब
::सुन्दर बनकर सत्य निरामय।"
::: *** *** ***
देखा, कवि का स्वप्न मधुर था,
::कला-तीर्थ में आज मिला था
::महा सत्य भावुक सुन्दर से।
:::: *
फूँक दे जो प्राण में उत्तेजना,
एक पल ठहरे जहाँ जग ही अभय,
खोज करता हूँ उसी आधार की।
 
 
</poem>
Delete, Mover, Reupload, Uploader
16,441
edits