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|रचनाकार=रामधारी सिंह '"दिनकर'"|अनुवादक=
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<poem>
लेन-देन का हिसाब
लंबा और पुराना है।
लेन-देन का हिसाब<br>जिनका कर्ज हमने खाया था,उनका बाकी हम चुकाने आये हैं।लंबा और पुराना है।<br><br>जिन्होंने हमारा कर्ज खाया था,उनसे हम अपना हक पाने आये हैं।
जिनका कर्ज हमने खाया था,<br>लेन-देन का व्यापार अभी लंबा चलेगा।उनका बाकी हम चुकाने आये हैं।<br>जीवन अभी कई बार पैदा होगाऔर जिन्होंने हमारा कर्ज खाया था,<br>उनसे हम अपना हक पाने आये हैं।<br><br>कई बार जलेगा।
और लेन-देन का सारा व्यापार अभी लंबा चलेगा।<br>जीवन अभी कई बार पैदा होगा<br>जब चुक जायेगा,और कई बार जलेगा।<br><br>ईश्वर हमसे खुद कहेगा -
और लेन-देन का सारा व्यापार<br>जब चुक जायेगा,<br>ईश्वर हमसे खुद कहेगा -<br><br> तुम्हारा एक पावना मुझ पर भी है,<br>आओ, उसे ग्रहण करो।<br>अपना रूप छोड़ो,<br>मेरा स्वरूप वरण करो।<br><br/poem>
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