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{{KKRachna
|रचनाकार=रामधारी सिंह "दिनकर"
|अनुवादक=
|संग्रह=परशुराम की प्रतीक्षा / रामधारी सिंह "दिनकर"
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<poem>
गरदन पर किसका पाप वीर ! ढोते हो ?
शोणित से तुम किसका कलंक धोते हो ?
गरदन पर किसका पाप वीर ! ढोते हो ?<br>उनका, जिनमें कारुण्य असीम तरल था,शोणित से तुम किसका कलंक धोते हो ?<br><br>तारुण्य-ताप था नहीं, न रंच गरल था;सस्ती सुकीर्ति पा कर जो फूल गये थे,निर्वीर्य कल्पनाओं में भूल गये थे;
उनका, जिनमें कारुण्य असीम तरल था,<br>तारुण्यगीता में जो त्रिपिटक-ताप था नहींनिकाय पढ़ते हैं, न रंच गरल था;<br>सस्ती सुकीर्ति पा तलवार गला कर जो फूल गये थेतकली गढ़ते हैं;शीतल करते हैं अनल प्रबुद्ध प्रजा का,<br>निर्वीर्य कल्पनाओं में भूल गये थेशेरों को सिखलाते हैं धर्म अजा का;<br><br>
गीता सारी वसुन्धरा में जो त्रिपिटकगुरु-निकाय पढ़ते हैंपद पाने को,<br>तलवार गला कर प्यासी धरती के लिए अमृत लाने कोजो तकली गढ़ते हैं;<br>शीतल करते हैं अनल प्रबुद्ध प्रजा कासन्त लोग सीधे पाताल चले थे,<br>शेरों को सिखलाते (अच्छे हैं धर्म अजा काअबः;<br><br>पहले भी बहुत भले थे।)
सारी वसुन्धरा में गुरु-पद पाने को,<br>प्यासी धरती के लिए अमृत लाने को<br>जो सन्त लोग सीधे पाताल चले थे,<br>(अच्छे हैं अबः; पहले भी बहुत भले थे।)<br><br> हम उसी धर्म की लाश यहाँ ढोते हैं,<br>शोणित से सन्तों का कलंक धोते हैं।<br/poem>
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