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06:43, 28 अगस्त 2020 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=विक्रम शर्मा
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|संग्रह=
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<poem>
दश्त में यार को पुकारा जाए
क़ैस साहब का रूप धारा जाए
मुझको डर है कि पिंजरा खुलने पर
ये परिंदा कहीं न मारा जाए
दिल उसे याद कर सदा मत दे
कौन आता है जब पुकारा जाए
दिल की तस्वीर अब मुकम्मल हो
उनकी जानिब से तीर मारा जाए
लाश मौजों को हुक्म देती है
ले चलो जिस तरफ किनारा जाए
दिल तो है ही नहीं हमारा फिर
टूट जाए तो क्या हमारा जाए
ये तिरा काम है नये महबूब
डूबते शख़्स को उभारा जाए
</poem>