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10:43, 29 अगस्त 2020 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=सर्वेश अस्थाना
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<poem>
तुम मिले हमको तो गुनगुना उठा समय।।
वर्षों पीछे छूट चुके कुछ अपनो सी तुम,
आंखों में चमके कुछ सपनो सी तुम।
एक एक कर खोलती खिड़कियां ज्यों
सिर्फ अपने ही लगते भवनों सी तुम।
एक पल को साथ आये महमहा उठा समय।।
तरुणाई झांक उठी नयन के झरोखों से
सांस सांस महक उठी मस्त पवन झोंकों से।
है सुगंध बचपन की रीति का सयाना पन,
आती है नेह बदली पलकों की नोकों से।
हृदय ने है तान छेड़ी चहचहा उठा समय।।
बंजर सी लगती थी भावना की भूमि सारी ,
कांटों से घिरी घिरी कामना की भूमि सारी।
नही कोई बीज मिला उगे जो अतीत बनकर,
उर्वर सी लगे आज साधना की भूमि सारी।।
तुम आईं भोर बन लहलहा उठा समय।
तुम मिले हमको तो गुनगुना उठा समय।।
</poem>