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12:25, 29 अगस्त 2020 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=अभिषेक कुमार अम्बर
|अनुवादक=
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<poem>
ज़िन्दगी पेन है
उसके रिफ़िल हो तुम
पेन की पाई जाती हैं किस्में बहुत
कोई मोंटेक्स है कोई पॉयलेट है
पेन महँगे हैं जो उनकी इक ख़ासियत
मन करे जब आप रिफिल बदल सकते हो
लेकिन मैं पेन हूँ 3 रुपये वाला
जिसमें ऐसी कोई ख़ासियत तो नहीं
इक कमी है मगर
ये टूट जायेगा पर रिफ़िल बदलता नहीं।
</poem>