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12:26, 29 अगस्त 2020 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=अभिषेक कुमार अम्बर
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<poem>
न हम बदले न तुम बदले
न चांद सितारे ही बदले
सूरज भी अभी है पहले सा
मौसम भी वही है सर्दी का
फसलें भी वही हैं सरसो की
वही बूढ़ी दादी बरसो की
दरिया में ज़रा उफ़ान है कम
मिट्टी भी नही पहले सी नम
पेड़ों से बहारें ग़ायब हैं
पौधों की नज़ाकत भी है गुम
इक तारीख़ बदलने को केवल
"नया साल आया" कहते हो तुम।
</poem>