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05:19, 5 सितम्बर 2020 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=अजय सहाब
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<poem>
बिन तपे लोहा भी फ़ौलाद नहीं हो सकता
कोई बिन मश्क़ के उस्ताद नहीं हो सकता
तूने तेशे को छुआ ,और न परबत काटा
तू मियां मुफ़्त में फरहाद नहीं हो सकता
मैं हूँ इक आह मगर कोई अना है मेरी
मैं कोई कांपती फ़रियाद नहीं हो सकता
रोज़ मिलता है मुझे, रोज़ बताता हूँ उसे
नाम हम जैसों का तो याद नहीं हो सकता
उम्र भर तुमने रुलाया जिसे आंसू देकर
इक तबस्सुम से तो अब शाद नहीं हो सकता
मेरा अफ़साना भी इक फूल है वीराने का
जो कभी क़ाबिले रुदाद नहीं हो सकता
दिल की तामीर इलाही ने अजब की है 'सहाब'
ये जो लुट जाए तो आबाद नहीं हो सकता
</poem>