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जिनसे सब रानाइयाँ थीं ,मेरी इस तहरीर में / अजय सहाब
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,
04:53, 7 सितम्बर 2020
मेरे हाथों की लकीरें सब उसी के नाम थीं
बस वही
इक
इक शख़्स जो ,था ही नहीं तक़दीर में
ख़्वाब सारे , ख़्वाब ही थे ,ख़्वाब बन कर रह गए
Abhishek Amber
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