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05:30, 7 सितम्बर 2020 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=रमेश तन्हा
|अनुवादक=
|संग्रह=तीसरा दरिया / रमेश तन्हा
}}
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<poem>
गर्मी में जो कहते हैं कि बदकार है धूप
सर्दी में वही कहते हैं बीमार है धूप
इस जिम्न में कहता रहे कुछ भी कोई
सच ये है कि ज़िन्दगी का आधार है धूप।
</poem>