562 bytes added,
05:36, 7 सितम्बर 2020 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=रमेश तन्हा
|अनुवादक=
|संग्रह=तीसरा दरिया / रमेश तन्हा
}}
{{KKCatRubaayi}}
<poem>
होना है जो होगा वही डरता क्या है
खुद-साख्ता कर्ब से गुज़रता क्या है
लम्हे की नज़ाकत भी, चलो होती है
दिल को जो बुरा लगे वो डरता क्या है।
</poem>