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07:00, 7 सितम्बर 2020 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=अंबर खरबंदा
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|संग्रह=
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<poem>
है ज़द पे कौन-कौन ठिकाना तो है नहीं
कुछ साफ़-साफ़ उसका निशाना तो है नहीं
सच है के सच की राह तो सीधी है, साफ़ है
ये भी है सच, के सच का ज़माना तो है नहीं
रखता है बेवफ़ाई का इल्ज़ाम मेरे सर
अब उसके पास और बहाना तो है नहीं
मिलता है कुल जहां से मुझे प्यार दोस्तो!
हालांके मेरे पास ख़जाना तो है नहीं
बस इक ग़ज़ल में कैसे सुना दूँ मैं हाले-दिल
इतना भी मुख़्तसर ये फ़साना तो है नहीं
</poem>