{{KKAnthologyPita}}
<Poem>
प्रिय पिता!
याद हैं मुझे
अपने बचपन के वे दिन
हज़ारों
घंटियों घण्टियों के बजने कीआवाज़-सी उसकी हँसी हंसी से
गूँजने लगती थीं चारों दिशाएँ परस्पर
ऊपर उछालने लगते थे
माँ डर जाती
घंटियों घण्टियों की आवाज़ बन्द हो जाती
दिशाएँ शान्त हो जाती थीं
तुम्हारी दॄष्टि चिड़िया-सी
फुदकती फिरती है
ढूँढती ढूँढ़ती हुई कुछ
पर