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हाइफा हीरो / दीपसिंह भाटी 'दीप'

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मलफियोह दलपत मेजर, सैन जबरी संग।
धरण घोड़ां पौड़ धूजै, देख दुसमी दंग।
तो कर जंग जी कर जंग, जबरो जरमनी सूं जंग।।1।।

कड़कड़ी पुरजोर कांठळ, ताटक्या तुरंग।
भाल अणियां गगन भळकी, ओज छायो अंग।
तो धन रंग जी धन रंग, दळपत रांगड़ा नै रंग।।2।।

अडग दळपत अर अमानो, घोड़लां घमसाण।
खाग कबडी सूर खैले, ऊफणै अरमाण।
तो अरियाण जी अरियाण, अरड़ावै घणा अरियाण।।3।।

चैत चपला खड़ग चमकै, समर रमेह सूर।
वीर दळपत मरट बंको, नैण भर नव नूर।
तो भरपूर जी भरपूर, भरियो सूरपण भरपूर।।4।।

खाळियां खळ रगत खळकै, मर कटै नर मुंड।
धन हो दळपत असि धारां, झुरड़िया अरि झुंड।
तो खंड खंड जी विखंड, खलु कर दीया खंड खंड।।5।।

दड़ुक्यो नर शेर दळपत, निपट अरियां नास।
मारिया घण तुरक जरमन, तुरत हरवा त्रास।
तो शाबास जी शाबास, सूरै शेर कूं शाबास।।6।।

मरोड़ दीह मशीनगनां, तोड़ दी सब तोफ।
सेन डारी काप सारी, करै दळपत कोफ।
तो घण रौफ जी घणरौफ, छायौ तुरक सेना रौफ।।7।।

रणखेतां जाये रमियो, रांगड़ो रजपूत।
काफिरां नै दफण कीधा, पाली धर सपूत।
तो मजबूत जी मजबूत, दळपत वजर तन मजबूत।।8।।

साथ ले गोपाळ शेरो, जोरजी शहजाद।
सूरमो सुलताण सगतो, अनोपो आजाद।
तो मरजाद जी मरजाद, राखी रजवटी मरजाद।।9।।

रांगड़ां रो देख रीठक, रवि ठांभ्यौ रथ्थ।
रणचंडी दे ताल रमी, हणै खप्पर हत्थ।
तो समरत्थ जी समरत्थ, हैफा हीरलो समरत्थ।।10।।

अवनिज ऊपर नाम अमर, सूर शेखावत्त।
गीत गौरव 'दीप' गावै, देव सम दलपत्त।
तो सतमत्त जी सतमत्त, राखै सांवरै सतमत्त।।11।।
</poem>
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