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05:52, 8 अक्टूबर 2020 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=दीपसिंह भाटी 'दीप'
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<poem>
उकती बगसो ईशरी, देवो आखर दान ।
सङक सुरक्षा सांबलजो, कवता कानो कान।।
सङकां बणगी सांवठी, चमके रही चम चम।
अळगां रा नेङा अचे, कर दी दूरियां कम ।।
सङकां काळी सांपणी, बढे रही बलखाय।
गफलतिया ने ओ गिटे, सावचेतियां साय।।
सङक संभाळ वहो सदा, नित नित पाळो नेम।
हर दम टळेज हादसा, विरथा मिटे ज वेम।।
छंद-रोमकंद
सत आद अनाद हरी समरो सब, आरध देव सदा उचरो।
नवलाख रुपी निजवाहण को नित,कोटिक बार प्रणाम करो।
सवचेतक होय चलो मग सावळ,आखिर ख्याल रखो अपनो
रफतार सँभाल चलो सङकां पर,मानुष जूण अमोल मनो।।1
असवार हुये कळ वाहण ऊपर, तेज गती अहँकार तजो।
नह वादइ वाद अगे निकलो नित, होड इ होड हुवे हरजो।
मफयात मने नह मात मशीनरि, गैलइयां ज रखै न गनो।
रफतार संभाल चलो सङकां पर,मानुष जूण अमोल मनो।।2
हलमेट झुकाय खङो दुपवाहन, सीट पटो ज हमेश सजो।
डग डावय हाथ चलो नित डागर, टाफिक रूल मती टपजो।
लगतार वहो पण राखण लीमिट, बूधयमान समान बनो।
रफतार सँभाल चलो सङकां पर,मानुष जूण अमोल मनो।।3
हरमेश चलो हवले हवळे हद , चेत सुहावण चाल चलो।
मन मूरख चंचल लाख मतो मत, मोह वशी गत ना मचलो।
रख दूर नशा निदरा निरभागण , जागत सार बङो जतनो।
रफतार सँभाल चलो सङकां पर,मानुष जूण अमोल मनो।।4
अपडेट अहोनिश होर्न अंडीकट, रेस टकाटक ब्रेक रखो।
सब सेफ सवारि करो समझायक , लारह कूद नहीं लटको।
भण दूघटना लख देर भली , कर मीत सुजाणक को कहनो।
रफतार सँभाल चलो सङकां पर,मानुष जूण अमोल मनो।।5
गउ मात अजा विचरे बहु गाडर , ऊंट पँखेरु चले अगणो।
जग जीव जिनार रचे जगदीशर , भीतर सांस समान भणो।
उर अंदर भाव दया उपजाकर , जीव बचाव करो जतनो।
रफतार सँभाल चलो सङकां पर,मानुष जूण अमोल मनो।।6
भगवान करे दुख दूर टरे भय,सेवत मंगल काज सरे।
पग भाळ रुखाल करे परमेसर, काळ जमावळ दूर करे।
कवि 'दीप'भणे सबने समझा कर,भूधर नाम सदा भजनो।
रफतार सँभाल चलो सङकां पर, मानुष जूण अमोल मनो।7
कलश
सङकां चलो संभाल, जान माल कर जाबतो।
अळगी रख अंताळ , अवस न चलणो आखतो।।
साइड चाल संभाल, ध्यान चहुंदिश धारणो।
हेलमेट हेताळ , शीश मुकुट सम सारणो।।
सावधान होय सब संचरो , पग पग पर नैम पाळ।
देवी वरणे कवि 'दीपियो' , कबहुं नी ग्राहे काळ।।
</poem>