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बैसाखियाँ / निदा फ़ाज़ली

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|संग्रह=आँखों भर आकाश / निदा फ़ाज़ली
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<poem>
(एक वियतनामी जोड़े की तस्वीर देखकर)
आओ हम-तुम
इस सुलगती खामुशी में
रास्ते की
सहमी-सहमी तीरगी में
अपने बाजू, अपनी सीने, अपनी आँखें
फड़फड़ाते होंठ
चलती-फिरती टाँगें
चाँद के अन्धे गढ़े में छोड़ जाएँ
(एक वियतनामी जोड़े की तस्वीर देखकर)<br>आओ हम-तुम<br>इस सुलगती खामुशी में<br>रास्ते की<br>सहमी-सहमी तीरगी में<br>अपने बाजू, अपनी सीने, अपनी आँखें<br>फड़फड़ाते होंठ<br>चलती-फिरती टाँगें<br>चाँद के अन्धे गढ़े में छोड़ जाएँ<br><br> कल<br>इन्हीं बैसाखियों पर बोझ साधे<br>सैकड़ों जख़्मों से चकनाचूर सूरज<br>लड़खड़ाता,<br>टूटता<br>मजबूर सूरज<br>रात की घाटी से बाहर आ सकेगा<br>उजली किरणों से नई दुनिया रचेगा<br>आओ<br>हम !<br>तुम !</poem>
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