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क्षणिकाएँ / अमन चाँदपुरी
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14:45, 22 अक्टूबर 2020
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<poem>
बोरसी
पुसोॅ मेॅ
कोहोॅ के आगू
रात भर
डरी-डरी जलै छै बोरसी
सोची केॅ
सब केॅ जाड़ोॅ सेॅ बचौइयै
कि खुद केॅ ।
परिवार
परिवारोॅ लेली
कुछ लोग
बेची दै छै
आँखोॅ के नींद
मनोॅ के चैन।
</poem>
Rahul Shivay
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