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ग़ुलामी / शिवनारायण जौहरी 'विमल'
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08:25, 4 नवम्बर 2020
{{KKCatKavita}}
<poem>
तब
'
"
में" मेरा कुछ भी
नहीं था मेरे पास
"मेरा" शब्द तो सुना ही नहीं था
कैसे जाऊँ माँ की गोद में वापस
समय कभी लौटा नहीं पीछे
गुलामी यूं चिपक कर रह
गई॥।
गई॥
</poem>
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