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"'''जीवनधारा"'''
मानव-जीवन बहुत कठिन है। यदि कोई किसी से नफ़रत करे, तो वह दुष्ट कहलाएगा, यदि प्यार करे, अपनापन जताए, तो शंका की दृष्टि से देखा जाएगा कि इसका कुछ न कुछ निहित स्वार्थ अवश्य है। आज संसार के कठिन दौर ने यह सिद्ध कर दिया है कि व्यक्ति नियति के हाथ का खिलौना है। इस विकट समय में आख़िर संवेदनशील मानव कहाँ जाए! जिसने दो पल आराम न किया हो, सदा दूसरों के लिए ही सोचा हो, आज वह चौराहे पर नितान्त अकेला खड़ा रह जाए, या श्मशान में पड़ा रह जाए! दूर-दूर तक कोई उसका सगा न हो, तो उसकी आत्मा पर क्या गुज़रेगी। दूसरों के लिए अहर्निश चिन्ता करने वाला फिर तो पागल ही कहलाएगा। घोर चुप्पी से उपजा विषाद उसका सब कुछ छीन लेगा। किसी से संवाद न होने की व्यथा कितनी गहरी है, इसकी केवल कल्पना की जा सकती है, इसका यथार्थ तो कोई भुक्तभोगी ही बता सकता है। यह संवादहीनता आज का युग-सत्य है।