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है तो है (ग़ज़ल) / दीप्ति मिश्र
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12:38, 3 अक्टूबर 2008
कब कहा मैनें कि वो मिल जाये मुझको, मै उसे
गैर
गै़र
न हो जाये वो बस इतनी हसरत है तो है
दोस्त बन कर
दुष्मनों
दुश्मनों-
सा वो सताता है मुझे
फ़िर भी उस जालिम पे मरना अपनी फ़ितरत है तो है
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Lina jain