पूछती हैं अपने फ़ैसलों से,
तुम्हीं सुख हो?
और घबराकर उतर आती हैं
सुख की सीढियाँ
बदहवास भागती हैं लड़कियाँ
बदहवास ढूंढ़ती हैं माँ को
ख़ुशी के अंधेरे में
माँ कहीं नहीं है
बदहवास पकड़ना चाहती हैं वे माँ को
जो नहीं रहेगी उनके साथ
सुख के किसी भी क्षण में!
माँएँ क्या जानती थीं
जहाँ छोड़ा था उन्होंने
उदासी से बचाने को,
वहीं हो जाएंगी उदास लड़कियाँ
एकाएक
अचानक
बिल्कुल नए सिरे से!
उदास होकर लड़कियाँ
लांघ जाती हैं वह उम्र
जहाँ खुला छोड़ देती थीं माँएँ!