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|रचनाकार=मोहित नेगी मुंतज़िर
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<poem>
सब्यूँ कू ज्यू पराण सारयूं मा
बेटी ब्वारी किसाण सारयू मा

गों का सब छोरा लूकी लूकी ते
देखदन तेरु जाण सारयूं मा।

तू मेरा पुंगडों की गुस्योंण बण जा
द्वी का द्वी कल्ला धाण सारयूं मा।

आज होटल मा खाणु खांदी बगत
याद ए खाणु खाण सारयूं मा।

जब बटी बणीन कार्ड राशन का
बन्द व्हे कुल्लू लाण सारयूं मा।

"मुन्तज़िर" घोर आवा झटपट से
सब लगिन भौंरी बाण सारयूं मा।
</poem>
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