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बुख़्ल की बुराइयाँ / नज़ीर अकबराबादी
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18:49, 4 अक्टूबर 2008
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<poem>
'''फ़क़ीरों की सदा '''
ज़र की जो मुहब्बत तुझे पड़ जावेगी बाबा!
अनिल जनविजय
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