|रचनाकार=फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
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वो लोग बहुत ख़ुशक़िस्मत थे
जो इश्क़ को काम समझते थे
या काम से आशिक़ी करते थे
हम जीते जी मसरूफ़ रहे
कुछ इश्क़ किया कुछ काम किया
वो लोग बहुत ख़ुशक़िस्मत थे <br>जो इश्क़ को काम समझते थे <br>या काम से आशिक़ी करते थे <br>हम जीते जी मसरूफ़ रहे <br>कुछ इश्क़ किया कुछ काम किया<br><br> काम इश्क़ के आड़े आता रहा <br>और इश्क़ से काम उलझता रहा <br>फिर आख़िर तंग आकर हम ने <br>दोनों को अधूरा छोड़ दिया <br><br>
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'''[[केही प्रेम गरेँ, केही कर्म गरेँ / फैज अहमद फैज / सुमन पोखरेल|यस कविताको नेपाली अनुवाद पढ्नलाई यहाँ क्लिक गर्नुहोस्]]'''
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