गृह
बेतरतीब
ध्यानसूची
सेटिंग्स
लॉग इन करें
कविता कोश के बारे में
अस्वीकरण
Changes
माँ के लिए मिटा मेरा तन (मुक्तक) / शंकरलाल द्विवेदी
1 byte added
,
14:05, 1 दिसम्बर 2020
{{KKCatMuktak}}
<poem>
मर तो रहा; किन्तु गौरव है
-
माँ के लिए मिटा मेरा तन।
रह-रह कर उस के दुलार की सुधियाँ मन पर छा जातीं हैं।।
ठहरो कुछ कर लो, लेकिन तुम मेरा देश ग़ुलाम न कहना-
क्योंकि अभी मेरे तन में कुछ, साहस की साँसें बाक़ी हैं।।
</poem>
Rahul1735mini
124
edits