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13:32, 4 दिसम्बर 2020 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=शंकरलाल द्विवेदी
|संग्रह=
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<poem>
'''दुनिया रैन-बसेरौ'''
जा दिन काल करैगौ फेरौ-
कोई बस न चलैगौ तेरौ।
रे प्रानी!-
मत कर गरब घनेरौ।।
निखरै कंचन जैसी काया,
चन्दन-गंधी शीतल छाया।
ऐसे मानसरोवर वारे-
हंसा उड़ि कहुँ अनत सिधारें,
रे पंछी!-
दुनिया रैन-बसेरौ।।
रे प्रानी!-
मत कर गरब घनेरौ।।
</poem>