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चिहाउँछन् किताबहरू / गुलजार / सुमन पोखरेल
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09:26, 10 दिसम्बर 2020
बन्ने गर्दथे जुन सम्बन्धहरू
ती अब के हुन्छन्...!
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'''[[किताबें झाँकती हैं बंद आलमारी के शीशों से / गुलज़ार |इस कविता का मूल हिन्दी पढ्ने के लिए यहाँ क्लिक करेँ ।]]'''
</poem>
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