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|रचनाकार=राज़िक़ अंसारी
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हम ही मक़तूल हम ही क़ातिल ख़ुद
क़त्ल में हम थे यानी शामिल ख़ुद

दोस्तों का क़ुसूर थोड़ी है
चोट खाता फिरे है ये दिल ख़ुद

हम परेशानियों के आदी हैं
हमने रस्ता चुना है मुश्किल ख़ुद

तू तो मक़तल में जश्न बरपा कर
रक़्स करने लगेगा बिस्मिल ख़ुद

कौन जीते ख़िताब मजनूं का
क़ैस है क़ैस के मुक़ाबिल ख़ुद

उसको एहसासे क़त्ल होने दो
रोज़ क़ातिल मरेगा तिल तिल ख़ुद
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