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23:18, 17 दिसम्बर 2020 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=राज़िक़ अंसारी
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{{KKCatGhazal}}
इश्क़ का पहला बाब चल रहा है
क़ैस ज़ेरे ख़िताब चल रहा है
पढ़ के दुख दर्द की किताब बता
किसका कितना हिसाब चल रहा है
आंसुओं की झड़ी न लग जाए
आज मौसम ख़राब चल रहा है
तीर कोई ख़ता नहीं होगा
तू अभी कामयाब चल रहा है
बे सबब तो हंसी नहीं आती
कुछ तो दिल में जनाब चल रहा है
आना जाना लगा है नींदों का
टुकड़े टुकड़े में ख़्वाब चल रहा है
मुझ से तुम ऐसे गुफ़्तगू करते
मेरा टाईम ख़राब चल रहा है
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