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23:40, 17 दिसम्बर 2020 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=राज़िक़ अंसारी
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<poem>
अब लोगों को कौन बताए क्या सच है
सब की आंखों के आगे धुंधला सच है
कोई भी तैयार नहीं है पीने को
वक़्त के हाथों में इतना कड़वा सच है
जेसै भी हो हज़्म तुझे करना होगा
मेरे बेटे ये तेरा पहला सच है
अपनी आंखें धोका भी खा सकती हैं
झूट ने सर से पावं तलक पहना सच है
हाथ क़लम होने के बाद में सोचेंगे
यार अभी जो लिखना है लिखना सच है
झूट लिखेंगे हम तो क़लम की है तौहीन
हम को अपनी ग़ज़लों में लिखना सच है
</poem>