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दुआ / परवीन शाकिर

1 byte removed, 08:36, 7 अक्टूबर 2008
चांदनी
 
उस दरीचे को छूकर
 मेरे नीम रोशन झरोखे में आयेआए, न आयेआए
मगर
 
मेरी पलकों की तकदीर से नींद चुनती रहे
 और उस आंख आँख के ख्‍वाब ख़्वाब बुनती रहे।
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