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|रचनाकार=राज़िक़ अंसारी
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लोग झुक कर सलाम यूं करते
नाम करना था, नाम यूं करते

जानते गर ज़मीर की क़ीमत
आप ख़ुद को ग़ुलाम यूं करते

वक़्त अपना ख़राब है वरना
लोग हम से कलाम यूं करते

देखना थे तबाह लोग तुम्हें
वरना तुम इंतज़ाम यूं करते

कोई हम सा नहीं मिला हमको
ख़ुद से वरना कलाम यूं करते
</poem>