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{{KKRachna
|रचनाकार=राज़िक़ अंसारी
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नया किरदार ढलना चाहिए अब
कहानी कुछ बदलना चाहिए अब

चलेगी नफ़रतों की फिल्म कब तक
तुम्हें टापिक बदलना चाहिए अब

बहुत कर ली अंधेरों ने हुकूमत
नया सूरज निकलना चाहिए अब

नहीं अच्छी नहीं नीयत हवा की
चराग़ों को संभलना चाहिए अब

ग़लत फ़हमी में कितना जी लिए हम
सराबों से निकलना चाहिए अब
</poem>