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|रचनाकार=राज़िक़ अंसारी
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नहीं टूटेगी ऐसी दोस्ती है
ग़मों से मेरी पक्की दोस्ती है

छुपा कर प्यास कहते फिर रहे हो
समंदर से हमारी दोस्ती है

ज़रुरत मंद बन कर देखते हैं
हमारी किस से कैसी दोस्ती है

नहीं ये पीठ में ख़ंजर नहीं ये
मेरी बरसों पुरानी दोस्ती है

मुझे रखना पड़ेगी सावधानी
मेरे दुश्मन से तेरी दोस्ती है

बदन पर अनगिनत ज़ख़्मों का मतलब
बहुत लोगों से अपनी दोस्ती है
</poem>