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अंधेरे का सफ़र / रमानाथ अवस्थी
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08:48, 7 अक्टूबर 2008
मधुर है प्यार,लेकिन क्या करूँ मैं
जमाने का ज़हर मेरे लिए है
नदी के साथ मैं,पहुँचा
किसी सागर किनारे
गई ख़ुद डूब ,मुझ को
छोड़ लहरों के सहारे
अनिल जनविजय
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