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और कोल्हू - बैल के तन में अभी
ज़िन्दा हिरन - मन,
 
चौकड़ी भरते ख़यालों को सँजोए
एक आँगनहीन घर बेनाम जी लेंगे !
आँगन - गेह चौपालें - कथाएँ
नागफन ब्योहार अन्धियारा घुटन
गूँगी बिथाएँ ,
देखने - भर को बड़प्पन हम बड़ों का
हर गली कूचा सड़क बदनाम जी लेंगे !
टूटकर उम्मीद जुड़ने की लिए
पल - छिन बिखरना,
 
ज़िन्दगी की हर किरच फिर भी समेटे
बेमज़ा - बेसूद सुबहो - शाम जी लेंगे !
</poem>
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