1,770 bytes added,
17:51, 26 जनवरी 2021 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु'
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
इस दुनिया में
इस दुनिया में अपने मन का
भला किसे आकाश मिला,
सीता हो या राम सभी को
सदा-सदा वनवास मिला।
जीवन बीता हमने हरदम
सबके पथ के शूल चुने
हमको प्यार करेगा कोई
हमने सौ-सौ सपन बुने ।
चूमे जब-जब पलक पनीले
इन अधरों की प्यास बुझे
क्रूर कपट -भरे हाथों से
तभी हमको संन्यास मिला।
तूफ़ानों के दौर झेलते
सोचा था कुछ पाएँगे
मनमीत को गले लगाकर
सब दु:ख दर्द बताएँगे।
यह दुनिया है अंधी- बहरी
सुने न देखे यह धड़कन
आलिंगन में जब-जब बाँधा
हमको छल का पाश मिला।
अच्छे कामों का पल जग में
सदा नहीं अच्छा होता
जो घर के भीतर तक पहुँचा
वह विषबेल सदा बोता।
जिस पर हमें रहा भरोसा
वो आस्तीन का साँप बना
'''मन -प्राणों से साथ रहा जो'''
'''उसको भी संत्रास मिला।'''
</poem>