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19:22, 2 फ़रवरी 2021 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार= अनिता मंडा
|संग्रह=
}}
[[Category: ताँका]]
<poem>
11
पिता लाए थे
झूले के लिए रस्सी
सूखा पड़ा तो
बेटी ने छुपा रखी
ढूँढे से भी ना मिली।
12
उलझे रोज़
ईयरफोन जैसी
ज़िन्दगी यह
सुलझाया जब भी
मिली उलझी हुई।
13
गिरते रहे
रात भर झील में
खिलते रहे
महकते कमल
चमकते तारों के।
14
बिखर जाती
हाथों से निकल के
चाँदनी रातें
यादों की डगर पे
चल देती अकेले।
15
मिली तपिश
समंदर का पानी
हो गया मीठा
ऊपर उठकर
बादल बन गया।
16
आसमाँ तेरे
आँगन में सितारे
कम नहीं थे
नहीं लेते मुझसे
मेरी आँखों का तारा।
17
क्या पता चाँद
सिसकता रहा क्यों
रात भर से
सिरहाने के पास
जाने क्या था कहना?
18
रातें अपनी
इबारतें हैं जैसे
दर्द से लिखी
दिन बंटे-बंटे से
गुजर ही जाते हैं।
19
डूबा सूरज
अँधेरा घनघोर
छाया मन में
बोया धरती पर
किरणों ने उजाला।
20
रोक न पाऊँ
पँखों पर उठाऊँ
मन-उमंग
भूला के दुःख-सुख
नाच लो मेरे संग।
</poem>