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बसंती हवा / केदारनाथ अग्रवाल
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12:36, 4 फ़रवरी 2021
हँसी चमचमाती भरी धूप प्यारी;
बसंती हवा में हँसी सृष्टि सारी!
हवा हूँ, हवा मैं बसंती हवा हूँ!</poem>
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