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दराज़ / इब्बार रब्बी
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08:20, 2 मार्च 2021
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<poem>
बीच की दराज
मेम
में
बन्द हूं ।
ऊपर होता हूं तो
पैर टूटता है
नीचे सरकता हूं
सिर
फूटरा
फूटता
है ।
मैं कहां जाऊं !
क्या करूं !
Arti Singh
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