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जीने का दुख / केदारनाथ अग्रवाल
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<poem>
जीने का दुख
न जीने के सुख से बेहतर है,
इसलिए कि
दुख में तपा आदमी
आदमी आदमी के लिए तड़पता है;
अनिल जनविजय
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