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मेरा नया बचपन / सुभद्राकुमारी चौहान
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कुछ मुँह में कुछ लिये हाथ में मुझे खिलाने लायी थी॥
पुलक रहे थे अंग, दृगों में
कौतुहल
कौतूहल
था छलक रहा।
मुँह पर थी आह्लाद-लालिमा विजय-गर्व था झलक रहा॥
Sharda suman
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