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{{KKRachna
|रचनाकार=अमरनाथ श्रीवास्तव
|अनुवादक=गेरू की लिपियाँ / अमरनाथ श्रीवास्तव
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छतनार क्या हुआ,
सोच रही लौटी
ससुराल से बुआ।बुआ ।
:: भाई-भाई फरीक:: पैरवी भतीजों की,:: मिलते हैं आस्तीन:: मोड़कर क़मीज़ों की
झगड़े में है महुआ
डाल का चुआ।चुआ ।
:: किसी की भरी आँखें:: जीभ ज्यों कतरनी है,:: किसी के सधे तेवर:: हाथ में सुमिरनी है
कैसा-कैसा अपना
ख़ून है मुआ।मुआ ।
:: खट्टी-मीठी यादें:: अधपके करौंदों की,:: हिस्से-बँटवारे में:: खो गए घरौंदों कीबिच्छू-सा आंगनआँगनडालान दालान ने छुआ।छुआ ।
:: पुस्तैनी रामायण::बंधी बँधी हुई बेठन में:: अम्मा जो जली हुई:: रस्सी है ऐंठन में
बाबू पसरे जैसे
हारकर जुआ।जुआ ।
:: लीप रही है उखड़े:: तुलसी के चौरे को:: आया है द्वार का:: पहरुआ भी कौरे को,
साझे का है भूखा
सो गया सुआ।सुआ ।
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