Changes

पर मुझे दुःख नहीं,
क्योंकि मैं बेटी हूँ, माँ हूँ ।
मुझे गर्भ गर्व हैं अपनी भूमिकाओं पर,
धरती का रूप हूँ मै,
कितने अंकुर पनपते हैं मुझ में ।
सारे प्राणियों का अस्तित्व मुझ से है,
इसीलिए मुझमें धैर्य है, करुणां करुणा है ।
जनन पालन करने की क्षमता है,
और मुझे गर्भ गर्व है, अपने अस्तित्व पर ।
मुझे कोई प्यार करे मेरा कोई संहार कर,े
इसीलिए मैं गर्भ से कहती हूँ कि मैं स्त्री हूँ ।
मुझमें षक्ति शक्ति है हर कश्टों कष्टों से लड़ने की,
हर कार्य को करने की ।
डरा नहीं सकते मुझे समाज के कदरदान,
किसी दहेज, भ्रूणहत्या, बेआवरू बेआबरू बना के ।
मैं चिनगारी हूँ, किसी न किसी रूप में,
ज्वालामुखी बनगकर बनकर भस्म कर दूँगी हर हत्यारे को ।
मुझे डर है तो ये कि,
कहीं मैं कमजोर न पड़ जाऊँ ।
बुराई की लपटों में मिट न जाऊँ ।
बचाना है अपना अस्तित्व,
और आयना आईना दिखाना है,
औरत को निम्न समझने वाले,
गिरे मानसिकता वाले लोगों को ।
इसीलिए दूर रखनी है नाजुक्ता,
अषिक्षाअशिक्षा, अन्धविष्वासअन्धविश्वास, अज्ञानता । और कर्मठता जोष जोश से,
बढना है जिन्दगी की राह में,
बाजुओं में षक्ति शक्ति भर कर ।
क्यों ? हर फब्तियाँ मुझ पर कसी जाती है,
क्यों? मुझे सहारा देने का भ्रम,
पाला जाता हैं मन में,
स्त्री से ही डर है पुरुशत्व पुरुषत्व को,
इसीलिए घेरा जाता है हर रूप मेे ।
कितने ही तीर चलाओं पर रुकूँगी नहीं,
बढ़ते रहेंगे कदम मेरे हर हाल में ।
क्योंकि मैं ही हूँ स्त्री षक्ति शक्ति रूपा, गर्भ गर्व करना है मुझे अपने अस्तित्व पर ।
</poem>
350
edits